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HISTORY OF UPSC :UPSC का इतिहास: भारत की प्रशासनिक सेवा का विकास

 

UPSC का इतिहास: भारत की प्रशासनिक सेवा का विकास







संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) भारतीय प्रशासनिक ढांचे का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। इसके इतिहास को समझने के लिए हमें भारत में ब्रिटिश शासनकाल के दौरान प्रशासनिक सेवा की स्थापना और उसके बाद के विकास को जानना होगा। UPSC का इतिहास न केवल भारतीय प्रशासनिक सेवाओं के विकास की कहानी है, बल्कि यह भारत के औपनिवेशिक और स्वतंत्रता के दौर की राजनीतिक और प्रशासनिक संरचना का भी प्रतीक है।

प्रारंभिक दौर: ब्रिटिश काल की प्रशासनिक सेवाएँ

ब्रिटिश शासन के दौरान भारतीय प्रशासनिक सेवाओं की नींव रखी गई। 1853 में पहली बार भारतीय सिविल सेवा (ICS) के लिए प्रतियोगी परीक्षा आयोजित की गई। उस समय यह परीक्षा केवल इंग्लैंड में आयोजित होती थी और इसमें केवल अंग्रेज उम्मीदवार ही भाग ले सकते थे। धीरे-धीरे, भारतीयों को भी इसमें शामिल होने का अवसर दिया गया, लेकिन यह प्रक्रिया काफी कठिन और भेदभावपूर्ण थी।

1858 में, जब भारत की सत्ता ईस्ट इंडिया कंपनी से ब्रिटिश क्राउन को हस्तांतरित की गई, तब भारतीय प्रशासनिक सेवाओं की भूमिका और अधिक महत्वपूर्ण हो गई। इस समय ICS अधिकारियों को ब्रिटिश भारत के प्रशासनिक तंत्र की रीढ़ माना जाता था।

भारतीयकरण की प्रक्रिया

19वीं सदी के अंत और 20वीं सदी की शुरुआत में, भारतीय राष्ट्रवादी आंदोलन के बढ़ते दबाव के कारण प्रशासनिक सेवाओं में भारतीयकरण की प्रक्रिया शुरू हुई। 1922 में पहली बार भारतीय सिविल सेवा की परीक्षा भारत में आयोजित की गई। यह एक महत्वपूर्ण कदम था, जिसने भारतीयों को प्रशासनिक सेवाओं में भाग लेने के लिए प्रेरित किया।

हालांकि, भारतीयकरण की यह प्रक्रिया धीमी थी और ब्रिटिश सरकार इसे नियंत्रित तरीके से लागू करना चाहती थी। भारतीय नेताओं, जैसे दादा भाई नौरोजी, गोपाल कृष्ण गोखले और बाल गंगाधर तिलक ने ICS में अधिक भारतीयों को शामिल करने की मांग की। 1935 के भारत सरकार अधिनियम ने भारतीय प्रशासनिक सेवाओं में सुधार के लिए और अधिक कदम उठाए।

स्वतंत्रता के बाद का दौर: UPSC की स्थापना

15 अगस्त 1947 को भारत की स्वतंत्रता के बाद, भारतीय प्रशासनिक सेवाओं में एक नई शुरुआत हुई। संविधान सभा ने संघ लोक सेवा आयोग (Union Public Service Commission) की स्थापना का प्रस्ताव रखा। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 315 से 323 तक UPSC के प्रावधानों का उल्लेख किया गया है।

26 जनवरी 1950 को भारतीय संविधान के लागू होने के साथ ही UPSC औपचारिक रूप से स्थापित हुआ। यह आयोग एक स्वतंत्र और निष्पक्ष संस्था है, जो केंद्र सरकार और राज्य सरकारों के लिए विभिन्न सेवाओं में अधिकारियों की नियुक्ति के लिए परीक्षा आयोजित करती है। UPSC का मुख्य उद्देश्य मेरिट आधारित चयन प्रक्रिया को सुनिश्चित करना और प्रशासनिक सेवाओं में उत्कृष्टता को बढ़ावा देना है।

UPSC के कार्य और जिम्मेदारियाँ

UPSC का मुख्य कार्य सिविल सेवा परीक्षा (CSE) का आयोजन करना है, जो भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS), भारतीय पुलिस सेवा (IPS), भारतीय विदेश सेवा (IFS), और अन्य केंद्रीय सेवाओं में अधिकारियों की भर्ती के लिए आयोजित की जाती है। इसके अलावा, UPSC निम्नलिखित कार्य करता है:

  1. भर्ती परीक्षाएँ आयोजित करना: UPSC सिविल सेवा परीक्षा के अलावा कई अन्य परीक्षाएँ आयोजित करता है, जैसे कि इंजीनियरिंग सेवा परीक्षा (ESE), संयुक्त चिकित्सा सेवा परीक्षा (CMS), रक्षा सेवा परीक्षा (CDS), और राष्ट्रीय रक्षा अकादमी (NDA) की परीक्षा।

  2. प्रोमोशन और भर्ती प्रक्रियाओं में परामर्श देना: UPSC सरकार को प्रोमोशन और सेवा नियमों से संबंधित मामलों में परामर्श देता है।

  3. अनुशासनात्मक मामलों में सलाह देना: आयोग सरकारी अधिकारियों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्यवाही के मामलों में भी सलाह देता है।

  4. अन्य जिम्मेदारियाँ: UPSC विशेष नियुक्तियों, प्रतिनियुक्तियों, और अन्य प्रशासनिक मामलों में सरकार की सहायता करता है।

UPSC की संरचना

UPSC में एक अध्यक्ष और अन्य सदस्य होते हैं, जिन्हें राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त किया जाता है। आयोग के सदस्य विभिन्न क्षेत्रों, जैसे प्रशासन, शिक्षा, सेना, न्यायपालिका, और सार्वजनिक सेवा के विशेषज्ञ होते हैं।

UPSC का मुख्यालय नई दिल्ली में स्थित है। आयोग की कार्यप्रणाली स्वतंत्र और निष्पक्ष होती है, जिससे यह सुनिश्चित होता है कि चयन प्रक्रिया पूरी तरह से पारदर्शी हो।

UPSC परीक्षा की विकास यात्रा

UPSC द्वारा आयोजित सिविल सेवा परीक्षा देश की सबसे प्रतिष्ठित और चुनौतीपूर्ण परीक्षाओं में से एक है। इसके पैटर्न और सिलेबस में समय-समय पर बदलाव किए गए हैं, ताकि यह बदलते समय की आवश्यकताओं के अनुरूप बना रहे।

  1. प्रीलिम्स (Prelims): यह प्रारंभिक परीक्षा है, जिसमें सामान्य अध्ययन और CSAT (सिविल सेवा एप्टीट्यूड टेस्ट) के प्रश्न शामिल होते हैं। यह चरण क्वालिफाइंग होता है।

  2. मुख्य परीक्षा (Mains): यह गहन लेखन परीक्षा है, जिसमें निबंध, सामान्य अध्ययन, और वैकल्पिक विषय के प्रश्न शामिल होते हैं।

  3. साक्षात्कार (Interview): अंतिम चरण में उम्मीदवार के व्यक्तित्व, ज्ञान, और नेतृत्व क्षमता का मूल्यांकन किया जाता है।

UPSC की चुनौतियाँ और सुधार

UPSC ने समय के साथ अपनी चयन प्रक्रिया में कई सुधार किए हैं। हालांकि, इसमें अभी भी कुछ चुनौतियाँ बनी हुई हैं:

  1. भारी प्रतियोगिता: हर साल लाखों उम्मीदवार परीक्षा देते हैं, लेकिन चयनित उम्मीदवारों की संख्या सीमित होती है।

  2. डायनेमिक सिलेबस: सिलेबस व्यापक और गहराई से भरा होता है, जो उम्मीदवारों के लिए चुनौतीपूर्ण होता है।

  3. भौगोलिक और सामाजिक असमानता: ग्रामीण और पिछड़े क्षेत्रों के छात्रों के लिए UPSC की तैयारी करना कठिन होता है।

इन चुनौतियों से निपटने के लिए, सरकार और आयोग ने कई कदम उठाए हैं, जैसे ऑनलाइन संसाधनों की उपलब्धता, निशुल्क कोचिंग योजनाएँ, और परीक्षाओं के लिए डिजिटल मंच।

निष्कर्ष

UPSC का इतिहास भारत की प्रशासनिक सेवा की विकास यात्रा का प्रतिबिंब है। यह न केवल एक परीक्षा आयोजित करने वाली संस्था है, बल्कि यह भारतीय प्रशासनिक तंत्र की गुणवत्ता और अखंडता का प्रतीक है। UPSC ने अपनी निष्पक्षता, पारदर्शिता, और कड़ी चयन प्रक्रिया के माध्यम से भारतीय युवाओं को देश की सेवा करने का एक महत्वपूर्ण अवसर प्रदान किया है।

UPSC का सफर ब्रिटिश शासनकाल से शुरू होकर आज के आधुनिक और लोकतांत्रिक भारत तक पहुँच चुका है। यह यात्रा न केवल ऐतिहासिक है, बल्कि प्रेरणादायक भी है, जो हमें यह सिखाती है कि मेहनत, समर्पण, और उत्कृष्टता के माध्यम से कोई भी लक्ष्य प्राप्त किया जा सकता है।

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